हाईकोर्ट ने आरोपियों की याचिका खारिज की, ट्रायल का सामना करेंगे शैलेन्द्र, अमन और सचिन मिश्रा
आदेश के बाद अब शैलेन्द्र, अमन और सचिन मिश्रा के खिलाफ आपराधिक मुकदमे की कार्यवाही जारी रहेगी और वे ट्रायल कोर्ट में अपनी सफाई देंगे। कोर्ट का यह फैसला कानून की प्रक्रिया और निष्पक्ष सुनवाई की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

प्रयागराज के हंडिया थाना क्षेत्र में दर्ज जानलेवा हमला के मामले में शैलेन्द्र कुमार मिश्रा, अमन मिश्रा और सचिन मिश्रा को इलाहाबाद हाईकोर्ट से राहत नहीं मिली है। आरोपियों ने एफआईआर और समन आदेश को रद्द करने के लिए धारा 482 सीआरपीसी के तहत याचिका दाखिल की थी, जिसे न्यायमूर्ति दीपक वर्मा ने 8 मई 2025 को खारिज कर दिया।
एफआईआर का सारांश
एफआईआर के अनुसार, शिकायतकर्ता दिनेश चंद्र पाण्डेय ने आरोप लगाया कि 19 नवंबर 2022 की अपराह्न 2-3 बजे के करीब आरोपी शैलेन्द्र कुमार मिश्रा, अमन मिश्रा और सचिन मिश्रा ने उनके भतीजे के साथ मारपीट की। शिकायतकर्ता के अनुसार, आरोपियों ने उन्हें गालियाँ दीं और लोहे की रॉड व डंडों से जानलेवा हमला किया, जिससे शिकायतकर्ता को गंभीर चोटें आईं, जिसमें सिर और शरीर के अन्य हिस्सों में घाव शामिल हैं। एफआईआर में आईपीसी की धाराएँ 323, 325, 504, 506, 427 लगाई गई थीं, जिसमें बाद में विवेचना के दौरान आईपीसी 308 की बढ़ोतरी कर दी गई थी।
आरोपियों का तर्क
कोर्ट में आरोपियों की ओर से तर्क दिया गया कि एफआईआर झूठी है और मेडिकल रिपोर्ट में गंभीर चोटों का उल्लेख नहीं है।
वादी पक्ष के काउंसल का तर्क
वादी पक्ष के वकील प्रकाश त्रिपाठी व राज्य के विद्वान वकील ने कहा कि सीटी स्कैन सहित गंभीर चोटें प्रमाणित हैं। कोर्ट ने कहा कि धारा 482 सीआरपीसी के तहत तथ्यों की गहराई से जाँच नहीं की जा सकती और साक्ष्य को देखना ट्रायल कोर्ट का विषय है। सुप्रीम कोर्ट की मिसालों का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि केवल उन्हीं मामलों में हस्तक्षेप हो सकता है, जहाँ एफआईआर पूरी तरह से झूठी या दुर्भावनापूर्ण हो, जो इस केस में नहीं पाया गया।
न्यायालय ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि आरोपियों को निचली अदालत में ट्रायल का सामना करना होगा।
प्रमुख बिंदु
- यह मामला थाना हंडिया, जिला प्रयागराज का है, जिसमें 21 नवंबर 2022 को दर्ज एफआईआर संख्या 730/2022 में शैलेन्द्र कुमार मिश्रा, अमन मिश्रा और सचिन मिश्रा के खिलाफ गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज हुआ था।
- आरोपियों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में धारा 482 सीआरपीसी के तहत मुकदमा रद्द करने की याचिका दायर की थी, जिसे कोर्ट ने 8 मई 2025 को खारिज कर दिया।
हाई कोर्ट का आदेश
इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति दीपक वर्मा ने 8 मई 2025 को दिए गए आदेश में कहा:
- आरोपियों की ओर से यह तर्क दिया गया कि एफआईआर में लगाए गए आरोप झूठे और आधारहीन हैं, और मेडिकल रिपोर्ट में गंभीर चोटों का उल्लेख नहीं है।
- वहीं, वादी पक्ष ने कहा कि चोटें गंभीर हैं और सीटी स्कैन भी हुआ है, इसलिए यह कहना गलत है कि आरोप झूठे हैं।
- कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धारा 482 सीआरपीसी के तहत कोर्ट का दायरा सीमित है और वह तथ्यों की गहराई से जाँच (मिनी ट्रायल) नहीं कर सकता। केवल उन्हीं मामलों में हस्तक्षेप किया जा सकता है, जहाँ प्रथम दृष्टया मुकदमा पूरी तरह से निराधार या दुर्भावनापूर्ण प्रतीत हो।
- कोर्ट ने पाया कि इस केस में दोनों पक्षों के तर्क विवादित तथ्यों पर आधारित हैं, जिनकी जाँच ट्रायल कोर्ट में ही संभव है।
- अतः कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी और कहा कि आरोपियों को ट्रायल का सामना करना होगा, क्योंकि प्रथम दृष्टया कोई कानूनी या प्रक्रियागत त्रुटि नहीं पाई गई।
कानूनी विश्लेषण
- सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की कई मिसालें हैं कि धारा 482 सीआरपीसी के तहत मुकदमा तभी रद्द किया जा सकता है, जब एफआईआर या चार्जशीट पूरी तरह से झूठी, दुर्भावनापूर्ण या कानून के अनुसार अपराध नहीं बनता हो।
- कोर्ट ने दोहराया कि साक्ष्य की गहराई से जाँच प्री-ट्रायल स्टेज पर नहीं हो सकती, और आरोपियों को ट्रायल का सामना करना होगा।
- शैलेन्द्र कुमार मिश्रा, अमन मिश्रा और सचिन मिश्रा के खिलाफ दर्ज एफआईआर में गंभीर धाराओं में आरोप लगे हैं।
- इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज करते हुए कहा कि मुकदमे की वैधता और साक्ष्यों की जाँच ट्रायल कोर्ट में होगी।
- इस आदेश के बाद अब आरोपियों को निचली अदालत में मुकदमे का सामना करना होगा।
What's Your Reaction?






