सामाजिक क्रांति की मशाल, यौन तस्करी के खिलाफ अडिग योद्धा
सुनीता कृष्णन, प्रज्वला फाउंडेशन की संस्थापक, यौन तस्करी और बाल वेश्यावृत्ति के खिलाफ भारत की सबसे प्रभावशाली सामाजिक कार्यकर्ताओं में से एक हैं। 15 वर्ष की आयु में सामूहिक बलात्कार का शिकार होने के बावजूद, उन्होंने 30,100 से अधिक पीड़ितों को बचाया और 17,000 बच्चों को वेश्यावृत्ति में धकेले जाने से रोका। पुणे में हालिया व्याख्यान में उन्होंने समाज की उदासीनता पर सवाल उठाए, जिससे उनकी आत्मकथा I Am What I Am चर्चा में रही। उनकी लड़ाई ने राष्ट्रीय नीतियों को प्रभावित किया और तकनीकी कंपनियों को ऑनलाइन शोषण रोकने के लिए प्रेरित किया। सुनीता की कहानी साहस, दृढ़ता और सामाजिक परिवर्तन की प्रेरणा है।

सुनीता कृष्णन, एक ऐसी शख्सियत जिनका नाम यौन तस्करी के खिलाफ संघर्ष का पर्याय बन चुका है, आज भी समाज को झकझोरने और बदलने का काम कर रही हैं। प्रज्वला फाउंडेशन की संस्थापक सुनीता ने अपनी जिंदगी को मानव तस्करी के पीड़ितों के लिए समर्पित कर दिया। हाल ही में 26 मार्च 2025 को पुणे में पुणे इंटरनेशनल सेंटर और अंजनी माशेलकर फाउंडेशन द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में, सुनीता ने अपनी आत्मकथा I Am What I Am पर चर्चा करते हुए समाज की उदासीनता पर करारा प्रहार किया। उन्होंने कहा, “हम औरंगजेब की मकबरे पर तो लड़ते हैं, लेकिन छह महीने की बच्चियों के बलात्कार और पाँच साल की बच्चियों को वेश्यावृत्ति में धकेलने पर चुप क्यों रहते हैं? हमारी संवेदनशीलता कहाँ खो गई है?”
सुनीता की जिंदगी आसान नहीं रही। 15 साल की उम्र में सामूहिक बलात्कार का शिकार होने के बाद, उन्होंने 17 बार जानलेवा हमलों का सामना किया, जिसमें एक हमले में उनकी एक कान की झिल्ली तक क्षतिग्रस्त हो गई। फिर भी, उनकी हिम्मत नहीं डगमगाई। प्रज्वला के माध्यम से उन्होंने विश्व का सबसे बड़ा पुनर्वास केंद्र स्थापित किया, जहाँ 30,100 पीड़ितों को नया जीवन मिला और 17,000 बच्चों को वेश्यावृत्ति के दलदल में धकेले जाने से बचाया गया। उनकी वकालत ने साइबर अपराधों की शिकायत प्रणाली को मजबूत किया और तकनीकी कंपनियों को ऑनलाइन शोषण के खिलाफ कदम उठाने के लिए प्रेरित किया।
पुणे में उनके व्याख्यान ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। चार फीट छह इंच की सुनीता की आवाज में साहस और स्पष्टता थी, जो समाज में बदलाव की जरूरत को रेखांकित करती थी। उनकी आत्मकथा न केवल उनकी निजी यात्रा को बयान करती है, बल्कि सामाजिक सुधार की दिशा में एक मार्गदर्शक के रूप में भी काम करती है।
सुनीता की उपलब्धियाँ केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं हैं। 2016 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया, और उनकी संस्था प्रज्वला ने हजारों जिंदगियों को रोशनी दी। एक्स पर एक यूजर ने उनकी प्रशंसा में लिखा, “सुनीता कृष्णन ने 23,000 से अधिक महिलाओं और बच्चियों को यौन शोषण के दलदल से निकाला। उनका समर्पण समाज के लिए प्रेरणा है।”
सुनीता का मानना है कि समाज को बदलने के लिए केवल मोमबत्ती मार्च काफी नहीं हैं। उनकी कहानी और उनके शब्द हमें यह सिखाते हैं कि सच्चा परिवर्तन तब आता है, जब हम अन्याय के खिलाफ एकजुट होकर लड़ते हैं। सुनीता कृष्णन न केवल एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं, बल्कि एक ऐसी मशाल हैं, जो भारत में सामाजिक क्रांति का रास्ता रोशन कर रही हैं।
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